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Wednesday, March 20, 2013

Maharaj Shri Baldev Prasad Mishra( महाराज श्री बल्देवप्रसाद मिशीर ) background

जंघई एक छोटा सा गावं हे। जिधर अज कल सब कुछ मिलता है। सिच्छा से लेकर ऐश आराम के साधन, यहाँ की रसमलाई बहुत चर्चित में रहती है। स्वाद में नंबर वन और दाम भी कम।

जैसे की सब जानते है पुराने ज़माने में कोई माध्यम नहीं था प्रचार का जिस्से कई महत्वपुर्ण जानकारियां लुप्त हो गयी है। अब उसके धुल भी न बच्चे हो!!!..
उस हि इतिहास की एक लुप्त होने की कगार पर थी कुछ कहानिया उनमे से एक कहानी महाराज श्री बलदेव जी का हे। जो की सिर्फ १५० से ३०० साल पुराणी बात है।

जितना कि हमें पडाया व् बताया गया हे। अंग्रेज और मुगलों के बारे में वो इस जगे पर लागु ही नहीं होती, अभी तक के बात चीत में ये ही पाया गया हे कि, इस बड़े से इलाके में अंग्रेज तो आते थे। पर किसी को परेसान नहीं किया, अंग्रेज और अफगानियो का इस इलाके से रासन पानी जाया करता था। जो की काफी प्रेम पूर्वक होता था। लेन देन में कोई तकरार नहीं हुवा। पता नहीं, यह इलाका इतना पिछड़ा हुवा था इस लिए अंग्रेजो से बच्चा हुवा की कुछ और बात थी। वेसे इस्पे खोज जरी हे हमारी, अंग्रेज यहाँ रहते थे वो भी शांति से।

उस समय के एक सब से चरचित लोकप्रिय महनुभव थे श्री बल्देवजी महाराज जिन्होंने अपने दम पर अंग्रेज शाशन को खाना पिने के सभी जरुरत की चीजे उपलब्द कराइ थी, और काफी गरीबो को रोजगार दिलवाया था। उनके पास उस्स समय काफी संपती थी महाराज भिकं (उनके पिता) की बनायीं हुई। जो की आज भगेडी, अन्नुवा में बट चूका हे।
अज भी काफी बुजुर्ग लोग उन्हे जानते हे जिन्हों ने उनके किस्से सुने थे।

महाराज भिकं उनके पिता थे। जिनकी शूरता हैरानी में डाल देता है। कहा जाता है कि ये भाई पागाल हो जाते थे। जब ईखटे होते थे तो इन्होने ही इस जगे से सारे बाग़ भगा दीये थे। जिससे इस जगे का नाम पडा भगेरी (बाग़ से भरा इलाका) पड़ा । उस समय के शशक थे। जो काफी कट्टर विचारो के थे पर इनके भाई-चारे और एक जुटता से सब प्रेरित रहते थे। सब सात सात और प्रेम से रहते थे। उस समय अमिरी गाय से तोलि जाती थी जितनी गाय उतना धनवान। पर यह भाई लोग तो १०० डेड सौ गय के अलावा १० ऊंट और ४ हांथी भी पाल रखे थे।
जगहपुर के ये भाईयो ने पुराने तरीके से जगह खोज था। जिसमे एक खतर नाक भैसे को छोड़ दिया जाता हे। जहा तक वो भंसा गया उस धरती के हिस्से को भगवन का प्रसाद मान कर सिर्फ उतने जगे को अपने परिवार के लिए शुभ मान कर जीवन वेतित किया। इस खानदान का रिवाज था की नये पैदा हुवे बच्चे को शेरनी का ढूध पिलाते थे। जो की उस समय शेर की संख्या सामान्य थी।
यहाँ का पसंदिला खेल कुस्ती था। जो की अलग अलग इलाको में रखे जाते थे।
और सिर्फ इंसानों से नहीं बाग़ और जंगली बेलो से भी होती थी। अज जहा उस खानदान का अवसतं लम्बाई ५.७ फुट से ५.११ फुट है। वहीं उस समय ६.५ से ७ फुट थी।

अभी तो काफी कुछ बाकि हे।
ये तो सिर्फ जंघई, प्रयाग में इसतित एक छोटे से गावं की कहानी है।
जिस्से कभी भारत सरकार ने संजोया नहीं ना तो इस पर कोई दस्तावेज राखी।
मुग़ल और अंग्रेजो ने भारतीयों को कम्जॊर बनाने के लिये उनकी अछि शभ्यता को नस्ट करने कि कोशिस कि और आदिवासी शभ्यता का प्रचार किया और बताया भारत ऐसा है। वैसा है। जब की भारत ने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था।

Thursday, March 14, 2013

जीवनी .... एक माहान,दिल के राजा


श्री बलदेवगड is name is given to this place after A famous king of Bhageri who's ancestry came 
from Jhagapur few km from Bhageri " महाराज श्री बलदेव मीसिर " Very kind and wise Person 
Still No Books were not return on him, many local old villager know about him and from 
A English men living near that village He wrote on his diary ....
Soon it will be published
 Shree Baldev Misir Maharaj                                 painted by Alen listener and SLM  

The Afgani,Were Also trading with Him the relations are very strong with them Maharaj Baldev

          A Full batch of Wheat,Rice,Bajra,Pea,Dals and All necessary items sales by Maharaja Bajdevji to British Banaras government in
                           

Kumbh Mela 2001 Image His Afgani frends son came to India from 

Kabul to meet him but it was too late



   Rare Images Collections 1960's
His 1070's Image With new horse name Geet
           














Very thankful to Mr Alen From London to sharing with me this all information..
Mr Alen Is Great Grand son of Mr Ruster listener Army Head of Indian British Council of Food Department .